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5 best Mullah nasruddin stories | मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियां

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Mullah Nasruddin ki kahaniya hindi me

मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियां – जहर का कटोरा

Mullah Nasruddin stories उन दिनों मुल्ला नसरुद्दीन एक काज़ी के घर नौकरी करता था। काज़ी भूत भगाने के लिए मशहूर था। उसने एक सेठ के घर और दुकान में घुस आए भूत भी भगाए थे। भूतों से राहत पाने की खुशी में एक दिन वह सेठ क़ाज़ी को एक कटोरा शहद भेंट कर गया।

काजी ने तभी भरपेट ताजा खाना खाया था इसलिए उसने शहद नहीं पीया। हालांकि वह ऐसा कर सकता था पर ऐसी हालत में उसे सोना पड़ जाता, जबकि उसे तुरंत किसी जरूरी काम से बाहर जाना था। काज़ी को शक था कि उसके घर से जाते ही मुल्ला नसरुद्दीन पूरा शहद चट कर जाएगा। ऐसी हालत में शहद को न तो साथ ले जाया जा सकता था और न ही मुल्ला नसरुद्दीन को ही अपने साथ ले जाया जा सकता था।

आखिर उसे शहद की सुरक्षा का एक उपाय सूझ ही गया। उसने मुल्ला नसरुद्दीन को अपने पास बुलाया और उससे कहा, “खोजा! मैं बाहर जा रहा हूं। इस कटोरे में जहर है। इसे संभाल कर रख देना। काज़ी को यकीन हो गया था कि अब मुल्ला नसरुद्दीन के रहते हुए सुरक्षित रहेगा, इसलिए हिदायत देने के कुछ देर बार ही वह घोड़े पर सवार होकर चला गया।

मुल्ला नसरुद्दीन को क़ाज़ी की भूत भगाने वाली विद्या पर किंचित भी विश्वास नहीं था। वह मानता था कि क़ाज़ी भूत भगाने के नाम पर लोगों को ठगता है। मुल्ला नसरुद्दीन बहुत दिनों से उसको सबक सिखाने की फिराक में था। इसलिए काज़ी के बाहर जाते ही उसने एक नान निकाला और उसे शहद में डुबाकर बड़े आराम से खाने लगा। कुछ ही पलों में वह सारा शहद चट कर गया। उसके बाद उसने काज़ी के घर के सारे बरतन तोड़ डाले।

काज़ी घर लौटा तो देखा कि शहद का कटोरा खाली पड़ा है। उसने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा, “कटोरे में रखा जहर कहां गया, ?

नसरुद्दीन ने बड़े नाटकीय अंदाज और कांपती आवाज में जवाब दिया, “मालिक! आज मुझ पर न जाने कैसा भूत सवार हुआ कि मैंने उसी की झोंक में आपके घर के सारे बरतन तोड़ डाले। जब भूत को यह पता लगा कि यह घर आपका है तो वह पीछा छोड़ कर भाग गया।

उसके जाने पर मुझे होश आया। तभी मुझे यह पता चला कि मैंने कितनी बड़ी भूल कर दी है। मैंने सोचा कि आप मुझे जरूर फटकार लगाएंगे और मुझसे मुआवजा मांगेंगे। मैं एक गरीब आदमी हूं। इतना मुआवजा देना मेरे बूते के बाहर है। इसलिए मैंने आत्महत्या करने के लिए सेठजी का दिया सारा जहर पी लिया है और मरने का इंतजार कर रहा हूं।

मुल्ला की बात सुनकर काज़ी ने अपना सिर पीट लिया। शहद तो गया ही, साथ ही उसके सारे बर्तन-भांडे टूट चुके थे। Mullah Nasruddin ki kahaniya in hindi

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स्वर्ग जाना चाहोगे या नर्क में ? मुल्ला नसरुद्दीन कहानी – Mullah Nasruddin stories

एक बार बादशाह ने मुल्ला नसरुद्दीन को अपना अंगरक्षक बना लिया। उसने हिदायत दी कि जब भी मैं यहां रहूं, तुम हरदम मेरे साथ रहा करो। मुल्ला नसरुद्दीन को यह काम बहुत उबाऊ लगा, लेकिन बादशाह के आदेश को टाला भी नहीं जा सकता था। खास कर उस हालत में जबकि वह कोई ऊट-पटांग बात न कह रहा हो। इसलिए मुल्ला नसरुद्दीन ने मन मारकर यह काम करना स्वीकार कर लिया।

एक दिन बादशाह के पास बड़े मौलवी आने वाले थे। मौलवी के आने से पहले बादशाह ने अपना लिबास बदला। रोजाना तो राजकर्मचारी उसे तैयार करते थे, लेकिन उस दिन बादशाह खुद ही तैयार होकर एक शीशे से आगे जा खड़ा हुआ। कुछ देर बाद पलटा और मुल्ला नसरुद्दीन से बोला, अभी-अभी आइने में मैंने अपनी सूरत देखी तो पता चला कि मैं वाकई बहुत बदसूरत हूं। अब मैंने फैसला कर लिया है कि आगे से मैं कभी आइने में अपना चेहरा नहीं देखूगा।

मुल्ला नसरुद्दीन ने तुरंत उत्तर दिया, जहांपनाह! आप अपनी सूरत एक बार देखकर ही उससे घृणा करने लगे हैं, लेकिन मुझे रोजाना हजारों बार आपकी सूरत देखनी पड़ती है। आप सोच भी नहीं सकते कि मेरा हाल क्या होता है।

इससे पहले कि बादशाह नसरुद्दीन की बात ठीक से समझता और उस पर गुस्सा होता, खबर मिली कि मौलवी साहब महल में पधार चुके हैं। मुल्ला नसरुद्दीन मन ही मन मौलवी को नापसंद करता था। उसने कई लोगों के मुंह से यह सुना था कि मौलवी खुदा के खौफ के नाम पर लोगों को डराकर उनसे अपनी सेवा-टहल करवाता है, किसी से भी कोई चीज ले लेता है और उसकी कीमत नहीं चुकाता। गरीबों को अपने से दूर रखता है और अमीरों की खैर-खबर लेने के लिए उनकी हवेलियों के चक्कर लगाता रहता है।

फिर भी नसरुद्दीन को बादशाह के साथ उसकी अगवानी के लिए बाहर आना पड़ा और आदर सहित उसका स्वागत-सत्कार करना पड़ा। मौलवी ने अपनी आदत के अनुसार बादशाह को ढेरों आशीर्वाद दिये, और लगे हाथों मुल्ला नसरुद्दीन पर भी उपकार करने की नीयत से मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा, मरने के बाद तुम वहिश्त में जाना चाहते हो या दोजख में।

जवाब देने से पहले नसरुद्दीन ने उलटा सवाल पूछ लिया “मौलवी साहब, पहले आप फरमाइये, आप कहां जाना चाहते हैं ? थोड़ी देर चुप रहने के बाद मौलवी ने जवाब दिया, मैं जिंदगी भर दूसरों की भलाई करता रहा हूं और ईमानदारी से खुदा के बताये रास्ते पर चलता रहा हूं, इसलिए मैं जरूर वहिश्त में जाऊंगा।

यह सुनते ही नसरुद्दीन फौरन बोल पड़ा, तब मैं दोजख में जाना चाहता हूं, जहां आप रहे, वहां मैं हरगिज नहीं रहना चाहता।

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Mullah Nasruddin stories – संगीत-प्रेमी

मुल्ला का एक मित्र, बेहद संगीत-प्रेमी था। कहीं भी संगीत का कोई कार्यक्रम हो, वह उसे सुनने के लिए जरूर जाता था, भले ही ऐसा करते हुए उसके सैकड़ों काम क्यों न रुक जाएं। यही नहीं, उसे संगीत सुनने से भी ज्यादा खुद गाने-बजाने का भी शौक था। अक्सर वह घंटों ही नहीं, कई दिनों तक संगीत का अभ्यास किया करता था।

मुल्ला अपने इस दोस्त को उसके असली नाम से नहीं बल्कि उसके संगीत प्रेम के चलते दिए गए नाम से याद रखता था। मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे ‘सुरीला’ नाम दे रखा था। सुरीला गाता भी सुरीला था या नहीं, यह तो ठीक-ठाक पता नहीं, लेकिन संगीत का लगातार अभ्यास करने के चलते उसके अड़ोसी-पड़ोसी उससे बहुत नाराज थे।

वे लोग अक्सर काज़ी के पास जाकर उसकी यह शिकायत कर चुके थे कि हमारे पड़ोसी को सख्त से सख्त सजा दी जाए, क्योंकि ये जनाब अक्सर अपनी बेसुरी तान छेड़े रखते हैं। इनकी तान घंटों तक पूरी ही नहीं होती, नतीजा यह होता है कि हमें अपनी रातें जाग कर काटनी पड़ती हैं।

वह तो गनीमत समझिए कि मुल्क के बादशाह को भी यह गलतफहमी थी कि वह अच्छा गवैया है इसलिए उसने अपने सभी काजियों को यह हिदायत दे रखी थी कि यदि कभी किसी गवैये के खिलाफ कोई अड़ोसी-पड़ोसी बेसुरी तान छेड़ने की शिकायत लेकर आए तो उस पर ध्यान न दिया जाए। बादशाह का मानना था कि अक्सर लोग संगीत के बारे में कुछ नहीं जानते इसलिए वे अच्छे संगीत को भी बेसुरा ठहराते हैं।

नतीजा यह था कि सुरीला अपने सभी पड़ोसियों की शिकायतों से बेखबर अपनी ही धुन में गाने-बजाने में व्यस्त था। हां, जब कभी उसका मन किसी और के सामने गाने का होता था, तब वह मुल्ला नसरुद्दीन को अपने घर आने की दावत देता था।

अपनी आदत के अनुसार उस दिन भी सुरीला ने अपने घर मुल्ला नसरुद्दीन को आने की दावत दी हुई थी। जैसाकि बताया जा चुका है, मुल्ला नसरुद्दीन का यह दोस्त संगीत का बहुत बड़ा प्रेमी था, इसलिए मुल्ला नसरुद्दीन के उसके यहां पहुंचने पर उसने तरह-तरह के साज खोजा को सुनाए।

दोपहर का समय हो गया। मुल्ला नसरुद्दीन के पेट में भूख के मारे चूहे कूदने लगे। फिर भी उसके दोस्त ने अपना संगीत जारी रखा। साज बजाने के साथ-साथ वह बीच-बीच में मुल्ला नसरुद्दीन से गपशप भी करता जा रहा था। एक साज पर काफी लंबा राग बजाने के बाद उसने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा, “खोजा! यह तो बताओ कि दुनिया में सबसे सुरीली आवाज किस वाद्ययंत्र की होती है दो तारे की या ख्वाब की ?

मुल्ला नसरुद्दीन ने तुरंत उत्तर दिया, “अरे यार! इस समय तो मुझे करछी और कड़ाही की आवाज दुनिया में सबसे सुरीली आवाज मालूम हो रही है।

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दाव-पेंचों की थैली – मुल्ला नसरुद्दीन की कहानि

बात उन दिनों की है जब मुल्ला नसरुद्दीन की प्रसिद्धि देश-विदेश में फैल चुकी थी। पड़ोसी मुल्क के बादशाह को जब इस बात का पत्ता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर कहा, सुना है कि हमारे पड़ोसी मुल्क में नसरुद्दीन खोजा नाम का एक आदमी अपने बादशाह को हमेशा उल्लू बनाता रहता है, क्या यह सच है ?

हाँ, बादशाह सलामत, यह सच है। मंत्रियों ने जवाब दिया, हमने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन बड़ा अक्लमंद और आलिम-फाजिल है। उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।

यह कैसे हो सकता है ? बादशाह बोला, एक मामूली आदमी आखिर इतना चतुर कैसे हो सकता है कि वह बादशाह को भी मात दे सके।

आप सही फरमा रहे है हुजूर। हमे भी यकीन नहीं है। अंत में बादशाह ने खोजा को मात देने के लिए स्वयं पड़ोसी राज्य में जाने का फैसला कर लिया ताकि वह यह साबित कर सके कि एक बादशाह मामूली आदमी से कहीं ज्यादा अक्लमंद होता है।

मुल्ला नसरुद्दीन के मुल्क में पहुंच कर बादशाह ने देखा कि एक आदमी खेत में काम कर रहा है। बादशाह ने उसके निकट जाकर उससे पूछा, तुम्हारे मुल्क में नसरुद्दीन खोजा नाम का एक आदमी रहता है, मैं उससे मिलना चाहता हूँ और देखना चाहता हूँ कि आखिर वह कितना अक्लमंद है।

यह सुनते ही उस आदमी ने जो खेत में काम कर रहा था और स्वयं ही मुल्ला नसरुद्दीन था, बादशाह की बात को भांप लिया और बोला, मैं ही नसरुद्दीन खोजा हूँ। कहिए मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ ?

ओह! तो तुम्हीं मुल्ला नसरुद्दीन हो ? बादशाह कटाक्ष करता बोला, मैंने सुना है, तुम बड़े ही धोखेबाज हो ? पर मैं तुम्हारे धोखे में हरगिज नहीं आऊंगा। क्या तुम मुझे झांसा दे सकते हो ?

जरूर! मैं आपको जरूर झांसा दे सकता हूँ। मुल्ला नसरुद्दीन ने उत्तर दिया, मगर ठहरिए, आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा। मैं जरा घर जाकर अपनी दांव-पेंचों की थैली तो उठा लाऊँ, तब आपको झांसा दे सकूंगा। अगर आप मेरे दांव-पेंचों से नहीं डरते, तो कुछ देर के लिए कृपया अपना घोड़ा मुझे दे दीजिये, ताकि मैं जल्दी वापस लौट सकूं।

ठीक है ले आओ अपनी दांव-पेंचों की थैली। ऐसी दस थैलियां भी मेरे सामने बेकार साबित होगी। यह कहकर बादशाह अपने घोड़े से नीचे उत्तर गया और घोड़े की लगाम खोजा को थमा दी। जल्दी जाओ और फौरन लौटकर आना। मैं तुम्हारे हर दांव-पेंच को नाकाम कर दूंगा।

मुल्ला नसरुद्दीन उछलकर घोड़े पर सवार हो गया और कुछ ही पलों में बादशाह की नजरों से ओझल हो गया। बादशाह उसकी बाट जोहता रहा। इंतजार करते-करते घंटों बीत गए। तब सूरज पश्चिमी पहाड़ियों में दुब गया, तब भी खोजा के लौटने के आसार नजर नहीं आए। अब तो बादशाह समझ गया कि वह मुल्ला नसरुद्दीन के झांसे में आ ही गया है। रात के अँधेरे में वह अपना-सा मुंह लेकर चुचाप अपने देश की ओर लौट पड़ा।

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दुम कटा घोड़ा – Mulla Nasruddin Hindi

एक बार बादशाह जब शिकार खेलने गया, तो वह अपने वजीर को साथ ले जाने की बजाय मुल्ला नसरुद्दीन को साथ ले गया। जंगल में दोनों ने बहुत खाक छानी, लेकिन किसी बड़े जानवर के मिलने की बात तो दूर, उन्हें किसी मेमने का शिकार करने में भी कोई कामयाबी नहीं मिली।

इससे बादशाह को बहुत झेंप महसूस हुई। वह बहुत मायूस हुआ। शिकार की तलाश में जंगल में भटकते-भटकते दोनों राजधानी से बहुत दूर निकल आए थे। रात होने से पहले राजमहल तक पहुंचना संभव नहीं था, इसलिए रात को एक सराय में ठहर गए।

अपनी मायूसी और झेंप मिटाने के लिए बादशाह ने मुल्ला नसरुद्दीन के साथ हंसी-ठिठोली करने की योजना बनाई। इसी इरादे से बादशाह आधी रात को चुपके से उठा और उसने मुल्ला नसरुद्दीन के घोड़े के जबड़े से मांस का एक टुकड़ा काट लिया। बादशाह ने मन ही मन तय किया था कि जब अगली सुबह वह मुल्ला नसरुद्दीन के साथ सफर के लिए निकलेगा, तब मुल्ला नसरुद्दीन की हालत देखने लायक होगी। वह बुरी तरह झेंपेगा और मैं खिल-खिला कर हंसूंगा।

पौ फटते ही मुल्ला नसरुद्दीन जागा तो उसने देखा कि घोड़े के जबड़े का कुछ मांस कटा हुआ है। वह फौरन समझ गया कि यह बादशाह की शरारत है। बादशाह ने मेरे साथ मसखरी करने के लिए ही मेरे घोड़े की दुर्गति की है। खैर, कुछ देर बाद बादशाह और मुल्ला नसरुद्दीन ने चलने की तैयार की। दोनों सराय से बाहर आए और अपने-अपने घोड़े पर सवार हो गए।

बादशाह को विदा करने के लिए सराय का मालिक और वहां ठहरे अन्य यात्री भी बाहर तक आए थे। वे सब बारी-बारी से बादशाह को सलाम करते रहे और बादशाह सबकी सलामी का जवाब देता रहा। इस बीच मुल्ला नसरुद्दीन ने मौका देखकर बादशाह के घोड़े की दुम काट दी।

सलामी परेड़ पूरी हुई तो दोनों ने अपने-अपने घोड़ों को चलने का इशारा किया। अभी दोनों सराय से थोड़ी ही दूर जा पाए थे कि बादशाह ने मुल्ला नसरुद्दीन के घोड़े की तरफ ऐसे देखा, जैसे अचानक ही उसकी नजर पड़ी हो। कुछ पल घोड़े को देखते रहने के बाद बादशाह ने मुल्ला नसरुद्दीन की हंसी उड़ाने के इरादे से मुल्ला नसरुद्दीन का ध्यान उसके घोड़े की तरफ दिलाया और खिल-खिला कर हंसते हुए बोला, “हा-हा-हा-हा! जरा सामने तो देखो खोजा। तुम्हारा घोड़ा मुंह फाड़ कर हंस क्यों रहा है ?

मुल्ला नसरुद्दीन ने ठहाका मारते हुए बादशाह के घोड़े की दुम की तरफ इशारा किया और कहा, हां जहांपनाह! मेरा घोड़ा दरअसल आपके घोड़े पर हंस रहा है। जरा पीछे मुड़कर अपने घोड़े को तो देखिए, उस बेचारे की दुम कहां चली गई ?

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3 thoughts on “5 best Mullah nasruddin stories | मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियां”

  1. really good. but download all old stories from vadodra and bhavnagar gujarati colleges please.
    regards
    Vaghela Vijay M.
    18-04-2023

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