Skip to content

चार धाम की रोचक जानकारी | 4 ધામ યાત્રા

चार धाम की रोचक जानकारी
6620 Views

चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका। प्राचीन समय से ही चारधाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनकी महिमा का प्रचार आद्यशंकराचार्यजी ने किया था। Interesting information about Char Dham. ( આખો લેખ નીચે ગુજરાતીમાં મુકવામાં આવ્યો છે.)

हिंदुओ के चार धाम की रोचक जानकारी

हिंदू मान्यता के अनुसार चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें तीर्थ भी कहा जाता है। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका। प्राचीन समय से ही चारधाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनकी महिमा का प्रचार आद्यशंकराचार्यजी ने किया था। माना जाता है, उन्होंने चार धाम व बारह ज्योर्तिलिंग को सुचीबद्ध किया था।

क्यों बनाए गए चार धाम?

चारों धाम चार दिशा में स्थित करने के पीछे जो सांंस्कृतिक लक्ष्य था, वह यह कि इनके दर्शन के बहाने भारत के लोग कम से कम पूरे भारत का दर्शन कर सके। वे विविधता और अनेक रंगों से भरी भारतीय संस्कृति से परिचित हों। अपने देश की सभ्यता और परंपराओं को जानें। ध्यान रहे सदियों से लोग आस्था से भरकर इन धामों के दर्शन के लिए जाते रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से आवागमन के साधनों और सुविधा में विकास ने चारधाम यात्रा को सुगम बना दिया है।

किस धाम की क्या विशेषता है?

बद्रीनाथ धाम-बद्रीनाथ उत्तर दिशा का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बद्रीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहां पर यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहां वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

रामेश्वर धाम-रामेश्वर में भगवान शिव की पूजा लिंग रूप में की जाती है। यह शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है।

पुरी धाम-पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। यहां मुख्य रूप से भात का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

द्वारिका धाम-द्वारका भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने इसे बसाया था। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होने द्वारका में ही किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांडवों को सहारा दिया। कहते हैं असली द्वारका तो पानी में समा गई, लेकिन कृष्ण की इस भूमि को आज भी पूज्य माना जाता है। इसलिए द्वारका धाम में श्रीकृष्ण स्वरूप का पूजन किया जाता है।

चारधाम

चारधाम की स्थापना आद्य शंकराचार्य ने की। उद्देश्य था उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चार दिशाओं में स्थित इन धामों की यात्रा कर मनुष्य भारत की सांस्कृतिक विरासत को जाने-समझें।

1 बदरीनाथ धाम

कहां है उत्तर दिशा में हिमालय पर अलकनंदा नदी के पास

प्रतिमा👉 विष्णु की शालिग्राम शिला से बनी चतुर्भुज मूर्ति। इसके आसपास बाईं ओर उद्धवजी तथा दाईं ओर कुबेर की प्रतिमा।

पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे।

उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।

त्रेता युग
〰️〰️〰️
नर तथा नारायण।
माना जाता है कि इन्होंने बद्रीनाथ मन्दिर में कई वर्षों तक तपस्या की थी।

नर और नारायण ने यहां कई वर्षों तक तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि उन्होंने अगले जन्म में क्रमशः अर्जुन तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मन्दिर ३,१३३ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में २७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई ७,१३८ मीटर है। बदरीनाथ में एक मन्दिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह २,००० वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।

द्वापर युग
〰️〰️〰️
मान्यता है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत इसी जगह पर लिखी थी।

बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।

2 द्वारका धाम

कहां है ? पश्चिम दिशा में गुजरात के जामनगर के पास समुद्र तट पर।

प्रतिमा – भगवान श्रीकृष्ण।

द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है जीसकी रचना २०१३ में की गई थी। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक है।

काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है। २००५ में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की।अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छटे पत्थर मिले और यहां से लगभग २०० अन्य नमूने भी एकत्र किए, लेकिन आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है अथवा नहीं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।

कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, पर राज उन्होने द्वारका में किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।

3 रामेश्वरम

कहां है दक्षिण दिशा में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के बीच रामेश्वर द्वीप।

प्रतिमा शिवलिंग

रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारें में यह रोचक कहानी कही जाती है। सीताजी को छुड़ाने के लिए राम ने लंका पर चढ़ाई की थी। उन्होने लड़ाई के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब राम सफलता न मिली तो विवश होकर उन्होने युद्ध किया। इस युद्ध में रावण और उसके सब साथी राक्षस मारे गये। रावण भी मारा गया; और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे। इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था।

रावण भी साधारण राक्षस नहीं था। वह पुलस्त्य महर्षि का नाती था। चारों वेदों का जाननेवाला था और था शिवजी का बड़ा भक्त। इस कारण राम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ। ब्रह्मा-हत्या का पाप उन्हें लग गया। इस पाप को धोने के लिए उन्होने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया। यह निश्चय करने के बाद श्रीराम ने हनुमान को आज्ञा दी कि काशी जाकर वहां से एक शिवलिंग ले आओ।

हनुमान पवन-सुत थे। बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े। लेकिन शिवलिंग की स्थापना की नियत घड़ी पास आ गई। हनुमान का कहीं पता न था। जब सीताजी ने देखा कि हनुमान के लौटने मे देर हो रही है, तो उन्होने समुद्र के किनारे के रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना दिया। यह देखकर राम बहुत प्रसन्न हुए और नियम समय पर इसी शिवलिंग की स्थापना कर दी। छोटे आकार का सही शिवलिंग रामनाथ कहलाता है।

सेतु का हवाई दृश्य, सामने की ओर श्रीलंकाको जाता है

बाद में हनुमान के आने पर पहले छोटे प्रतिष्ठित छोटे शिवलिंग के पास ही राम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंगहै।

सेतु का पौराणिक संदर्भ
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णान किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत में भी श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। अनेक पुराणों में भी श्रीरामसेतु का विवरण आता है।

एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे एडम्स ब्रिज के साथ-साथ राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इसी पुल को बाद में एडम्स ब्रिज का नाम मिला। यह सेतु तब पांच दिनों में ही बन गया था। इसकी लंबाई १०० योजन व चौड़ाई १० योजन थी। इसे बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था।

4 जगन्नाथपुरी

कहां है- पूर्व दिशा में उड़ीसा राज्य के पुरी में।
प्रतिमा – विष्णु की नीलमाधव प्रतिमा जो जगन्नाथ कहलाती है। सुभद्रा और बलभद्र की प्रतिमाएं भी।

इस मंदिर के उद्गम से जुड़ी परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी चकाचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी थी। तब उसने कड़ी तपस्या की और तब भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए।

किंतु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं। तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं।

ચાર ધામ વિશે રસપ્રદ માહિતી

ચાર ધામ વિશે રસપ્રદ માહિતી
ચાર ધામ વિશે રસપ્રદ માહિતી

હિન્દુઓના ચાર ધામ વિશે રસપ્રદ માહિતી

હિન્દુ માન્યતા અનુસાર ચાર ધામની યાત્રાનું ખૂબ મહત્વ છે. આને તીર્થધામો પણ કહેવાય છે. આ ચાર ધામ ચાર દિશાઓમાં આવેલા છે. ઉત્તરમાં બદ્રીનાથ, દક્ષિણમાં રામેશ્વર, પૂર્વમાં પુરી અને પશ્ચિમમાં દ્વારકા છે. પ્રાચીન કાળથી, ચારધામને તીર્થસ્થાન તરીકે ઓળખવામાં આવતા હતા, પરંતુ તેનો મહિમા આદ્યશંકરાચાર્ય દ્વારા ગુંજતો કરવામાં આવ્યો હતો. એવું માનવામાં આવે છે કે તેણે ચાર ધામ અને બાર જ્યોતિર્લિંગનુ મહત્વ દર્શાવ્યુ હતુ.

ચાર ધામની સ્થાપના કેમ કરવામાં આવી ?

ચારેય ધામોને ચાર દિશામાં રાખવા પાછળનો સાંસ્કૃતિક ધ્યેય એ હતો કે તેમના દર્શનના બહાને ભારતના લોકો ઓછામાં ઓછું આખું ભારત જોઈ શકે. તેમને વિવિધતા અને અનેક રંગોથી ભરેલી ભારતીય સંસ્કૃતિથી પરિચિત થાય. દેશની સંસ્કૃતિ અને પરંપરાઓ જાણે. સદીઓથી લોકો આસ્થાથી ભરેલા આ ધામોની મુલાકાતે જતા રહ્યા છે. છેલ્લા કેટલાક દાયકાઓમાં, પરિવહન અને સુવિધાના માધ્યમોમાં વિકાસને કારણે ચારધામ યાત્રા સરળ બની છે.

કયા ધામની વિશેષતા શું છે?

બદ્રીનાથ ધામ

ઉત્તર દિશામાં બદ્રીનાથને મુખ્ય તીર્થ સ્થળ માનવામાં આવે છે. અહી મંદિરમાં નર-નારાયણની પૂજા કરવામાં આવે છે અને અખંડ દીવો પ્રગટાવવામાં આવે છે, જે અચલ જ્ઞાનનું પ્રતીક છે. તે ભારતના ચાર ધામોમાંનું એક મુખ્ય યાત્રાધામ છે. દરેક હિંદુની ઈચ્છા હોય છે કે તે એકવાર બદ્રીનાથની મુલાકાત લે. અહીં પ્રવાસીઓ તપ્તકુંડમાં સ્નાન કરે છે. અહીં વનતુલસીની માળા, કાચા ચણા, દાણાના ગોળા અને ખાંડની મીઠાઈ વગેરેનો પ્રસાદ ચઢાવવામાં આવે છે.

રામેશ્વર ધામ

રામેશ્વરમાં ભગવાન શિવની પૂજા લિંગ સ્વરૂપે કરવામાં આવે છે. આ શિવલિંગને બાર જ્યોતિર્લિંગોમાંનું એક માનવામાં આવે છે. ભારતના ઉત્તરમાં કાશીની માન્યતા દક્ષિણમાં રામેશ્વરમ જેવી જ છે. રામેશ્વરમ ચેન્નાઈથી લગભગ 400 માઈલ દક્ષિણ-પૂર્વમાં આવેલું છે. આ એક સુંદર શંખ આકારનો ટાપુ છે જે હિંદ મહાસાગર અને બંગાળની ખાડીથી ચારે બાજુથી ઘેરાયેલો છે.

પુરી ધામ

પુરીનું શ્રી જગન્નાથ મંદિર ભગવાન કૃષ્ણને સમર્પિત છે. તે ભારતના ઓડિશા રાજ્યના દરિયાકાંઠાના શહેર પુરીમાં આવેલું છે. જગન્નાથ શબ્દનો અર્થ જગતનો સ્વામી થાય છે. તેમના શહેરને જગન્નાથપુરી અથવા પુરી કહેવામાં આવે છે. આ મંદિરની ગણતરી હિન્દુઓના ચાર ધામમાં થાય છે. આ મંદિરનો વાર્ષિક રથયાત્રા ઉત્સવ પ્રખ્યાત છે. અહીં મુખ્યત્વે ચોખાનો પ્રસાદ ચઢાવવામાં આવે છે.

દ્વારકા ધામ

દ્વારકા ભારતના પશ્ચિમમાં સમુદ્રના કિનારે આવેલું છે. હજારો વર્ષ પહેલા ભગવાન કૃષ્ણ દ્વારા તેનું સમાધાન કરવામાં આવ્યું હતું. કૃષ્ણનો જન્મ મથુરામાં થયો હતો, ગોકુલમાં મોટા થયા હતા, પરંતુ દ્વારકામાં શાસન કર્યું હતું. કહેવાય છે કે અસલી દ્વારકા પાણીમાં ડૂબી ગઈ, પરંતુ કૃષ્ણની આ ભૂમિ આજે પણ પૂજનીય માનવામાં આવે છે. તેથી જ દ્વારકા ધામમાં શ્રી કૃષ્ણ સ્વરૂપની પૂજા કરવામાં આવે છે.

ચારધામ

ચારધામની સ્થાપના આદિ શંકરાચાર્ય દ્વારા કરવામાં આવી હતી. ઉત્તર, દક્ષિણ, પૂર્વ અને પશ્ચિમ ચારે દિશામાં સ્થિત આ ધામોની મુલાકાત લેવાનો અને ભારતના સાંસ્કૃતિક વારસાને સમજવાનો હેતુ હતો.

1 બદ્રીનાથ ધામ
તે ક્યાં છે? ઉત્તરમાં, હિમાલય પર અલકનંદા નદી પાસે

પ્રતિમાઃ શાલિગ્રામ ખડકમાંથી બનેલી વિષ્ણુની ચતુર્ભુજ પ્રતિમા. તેની આસપાસ ડાબી બાજુ ઉદ્ધવજી અને જમણી બાજુ કુબેરની પ્રતિમા છે.

અહીંની પૌરાણિક કથાઓ અને લોકકથાઓ અનુસાર ભગવાન વિષ્ણુએ નીલકંઠ પર્વત પાસે બાળકના રૂપમાં અવતાર લીધો હતો. આ સ્થળ અગાઉ શિવભૂમિ (કેદાર ભૂમિ) તરીકે સ્થાયી થયું હતું. ભગવાન વિષ્ણુ તેમના ધ્યાન માટે જગ્યા શોધી રહ્યા હતા અને તેમને આ જગ્યા અલકનંદા નદીની ખૂબ નજીક ગમી. તે ઋષિ ગંગા અને અલકનંદા નદીના સંગમ પાસે વર્તમાન ચરણપાદુકા સ્થળ (નીલકંઠ પર્વત પાસે) પર બાળકના રૂપમાં અવતર્યા અને રડવા લાગ્યા.

તેનું રુદન સાંભળીને માતા પાર્વતીનું હૃદય હચમચી ગયું. ત્યારે માતા પાર્વતી અને શિવ સ્વયં તે બાળકની પાસે દેખાયા. માતાએ પૂછ્યું તારે બાળક શું જોઈએ છે? તેથી બાળકે ધ્યાન કરવા માટે તે જગ્યા માંગી. આ રીતે રૂપ બદલીને ભગવાન વિષ્ણુએ આ સ્થાન શિવ-પાર્વતી પાસેથી તેમના ધ્યાન માટે મેળવ્યું હતું. આ પવિત્ર સ્થળ આજે બદ્રી વિશાલના નામથી જાણીતું છે.

ત્રેતાયુગ

નર અને નારાયણ.
એવું માનવામાં આવે છે કે તેમણે બદ્રીનાથ મંદિરમાં ઘણા વર્ષો સુધી તપસ્યા કરી હતી.

નર અને નારાયણે અહીં વર્ષો સુધી તપસ્યા કરી હતી. એવું પણ માનવામાં આવે છે કે તેણે આગલા જન્મમાં અનુક્રમે અર્જુન અને કૃષ્ણ તરીકે જન્મ લીધો હતો.

પૌરાણિક માન્યતાઓ અનુસાર, જ્યારે ગંગા નદી પૃથ્વી પર ઉતરી, ત્યારે તે બાર પ્રવાહોમાં વહેંચાઈ ગઈ. આ સ્થાન પરનો પ્રવાહ અલકનંદા તરીકે ઓળખાયો અને આ સ્થાન ભગવાન વિષ્ણુનું નિવાસસ્થાન બદ્રીનાથ બન્યું. ભગવાન વિષ્ણુની પ્રતિમા સાથેનું હાલનું મંદિર 3,133 મીટરની ઉંચાઈ પર આવેલું છે અને તે આઠમી સદીના સંત આદિ શંકરાચાર્ય દ્વારા બનાવવામાં આવ્યું હોવાનું માનવામાં આવે છે. તેની પશ્ચિમમાં 27 કિમીના અંતરે સ્થિત, બદ્રીનાથ શિખરની ઊંચાઈ 7,138 મીટર છે. બદ્રીનાથમાં એક મંદિર છે, જેમાં બદ્રીનાથ અથવા વિષ્ણુની વેદી છે. તે 2,000 થી વધુ વર્ષોથી પ્રખ્યાત તીર્થસ્થાન છે.

દ્વાપર યુગ

એવું માનવામાં આવે છે કે આ સ્થાન પર પાંડવોએ તેમના પૂર્વજોને પિંડ દાન કર્યું હતું. આજે પણ બદ્રીનાથના બ્રહ્મકપાલ વિસ્તારમાં શ્રદ્ધાળુઓ તેમના પૂર્વજોને આત્માની શાંતિ માટે પિંડ દાન ચઢાવે છે. એવું પણ માનવામાં આવે છે કે આ સ્થાન પર વ્યાસજીએ મહાભારતની રચના કરી હતી.

શાલીગ્રામ શિલામાંથી બનેલી બદ્રીનાથની મૂર્તિ ચતુષ્કોણીય ધ્યાન મુદ્રામાં છે. એવું કહેવાય છે કે આ મૂર્તિને દેવતાઓએ નારદકુંડમાંથી બહાર કાઢીને સ્થાપિત કરી હતી. સિદ્ધ, ઋષિ, મુનિ તેના મુખ્ય અર્ચક હતા. જ્યારે બૌદ્ધો પ્રચલિત થયા, ત્યારે તેઓએ તેને બુદ્ધની મૂર્તિ તરીકે પૂજવાનું શરૂ કર્યું. શંકરાચાર્યના પ્રચાર પ્રવાસ દરમિયાન, બૌદ્ધો તિબેટ ભાગી ગયા અને મૂર્તિને અલકનંદામાં ફેંકી દીધી. શંકરાચાર્યે તેને ફરીથી અલકનંદામાંથી બહાર કાઢી તેની સ્થાપના કરી. તે પછી મૂર્તિને ફરીથી સ્થાનાંતરિત કરવામાં આવી અને ત્રીજી વખત રામાનુજાચાર્યે તેને તપ્તકુંડમાંથી બહાર કાઢીને તેની સ્થાપના કરી.

2 દ્વારકા ધામ
તે જામનગર, ગુજરાત નજીકના દરિયા કિનારે પશ્ચિમ દિશામાં ક્યાં છે.

ભગવાન કૃષ્ણની પ્રતિમા.

દ્વારકા એ ગુજરાતના દેવભૂમિ દ્વારકા જિલ્લામાં આવેલું એક નગર અને હિન્દુ તીર્થસ્થાન છે. તે હિંદુઓમાં સૌથી પવિત્ર યાત્રાધામોમાંનું એક છે અને ચાર ધામોમાંનું એક છે. તે સાત પુરીઓમાંથી એક છે. જિલ્લાનું નામ દ્વારકા પુરીના નામ પરથી રાખવામાં આવ્યું છે જે 2013 માં જિલ્લો બનાવવામાં આવ્યો. આ શહેર ભારતના પશ્ચિમમાં દરિયા કિનારે આવેલું છે. હિંદુ શાસ્ત્રો અનુસાર, ભગવાન કૃષ્ણ દ્વારા તેનું નિર્માણ કરવામાં આવ્યું હતું. આ શ્રી કૃષ્ણની કર્મભૂમિ છે. દ્વારકા ભારતના સાત સૌથી જૂના શહેરોમાંનું એક છે.

લાંબા સમય સુધી, જાણીતા સંશોધકોએ પુરાણોમાં વર્ણવેલ દ્વારકાનું રહસ્ય શોધવાનો પ્રયાસ કર્યો, પરંતુ વૈજ્ઞાનિક તથ્યો પર આધારિત કોઈ અભ્યાસ કાર્ય હજુ સુધી પૂર્ણ થયું નથી. 2005 માં, દ્વારકાના રહસ્યોને ઉજાગર કરવા માટે એક અભિયાન શરૂ કરવામાં આવ્યું હતું.

આ અભિયાનમાં ભારતીય નૌસેનાએ પણ મદદ કરી હતી.અભિયાન દરમિયાન દરિયાની ઊંડાઈમાંથી કાપેલા પથ્થરો મળી આવ્યા હતા અને અન્ય 200 જેટલા સેમ્પલ પણ અહીંથી એકત્ર કરવામાં આવ્યા હતા, પરંતુ હજુ સુધી એ નક્કી નથી થયું કે આ એ જ શહેર છે કે નહીં. તેની સ્થાપના શ્રી કૃષ્ણ દ્વારા કરવામાં આવી હતી. આજે પણ વૈજ્ઞાનિકો સ્કુબા ડાઈવિંગ દ્વારા સમુદ્રની ઊંડાઈમાં કેદ થયેલા આ રહસ્યને ઉકેલવામાં વ્યસ્ત છે.

કૃષ્ણનો જન્મ મથુરામાં થયો હતો, પરંતુ તેનું શાસન દ્વારકામાં હતું. પાંડવોને ટેકો આપ્યો. ધર્મને વિજયી બનાવ્યો અને શિશુપાલ અને દુર્યોધન જેવા અધર્મી રાજાઓનો નાશ કર્યો. તે સમયે દ્વારકા રાજધાની બની હતી. મોટા મોટા રાજાઓ અહીં આવતા હતા અને ઘણી બાબતોમાં ભગવાન કૃષ્ણની સલાહ લેતા હતા. આ સ્થળનું માત્ર ધાર્મિક મહત્વ નથી, રહસ્ય પણ ઓછું નથી. એવું કહેવાય છે કે કૃષ્ણના મૃત્યુ સાથે, તેમનું વસવાટ કરેલું દ્વારકા નગર સમુદ્રમાં ડૂબી ગયું હતું. આજે પણ તે નગરના અવશેષો અહીં મોજૂદ છે.

રામેશ્વરમ

દક્ષિણ દિશામાં તમિલનાડુના રામનાથપુરમ જિલ્લામાં સમુદ્રની મધ્યમાં રામેશ્વર દ્વીપ ક્યાં આવેલું છે.

પ્રતિમા શિવલિંગ

રામેશ્વરમના પ્રખ્યાત મંદિરની સ્થાપના વિશે કહેવામાં આવે છે કે માતા સીતાને બચાવવા રામે લંકા પર કૂચ કરી. તેણે સીતાજીને લડ્યા વિના છોડાવવા માટે ઘણો પ્રયાસ કર્યો, પરંતુ જ્યારે રામને સફળતા ન મળી, ત્યારે તેને લડવાની ફરજ પડી. આ યુદ્ધમાં રાવણ અને તેના તમામ સાથી રાક્ષસો માર્યા ગયા. રાવણ પણ માર્યો ગયો; અને અંતે શ્રી રામ સીતાજીને મુક્ત કરીને પાછા ફર્યા. આ યુદ્ધ માટે રામે વાનર સેના સાથે સમુદ્ર પાર કરવો પડ્યો, જે ખૂબ જ મુશ્કેલ કાર્ય હતું.

રાવણ પણ સામાન્ય રાક્ષસ ન હતો. તેઓ પુલસ્ત્ય મહર્ષિના પૌત્ર હતા. તેઓ ચારેય વેદોના જાણકાર હતા અને શિવના પરમ ભક્ત હતા. આ કારણે રામને માર્યા પછી ખૂબ જ પસ્તાવો થયો. તેને બ્રહ્મની હત્યાનું પાપ લાગ્યું. આ પાપ ધોવા માટે તેમણે રામેશ્વરમમાં શિવલિંગની સ્થાપના કરવાનો નિર્ણય કર્યો.

આ નિર્ણય કર્યા પછી શ્રી રામે હનુમાનજીને કાશી જવા અને ત્યાંથી શિવલિંગ લાવવાનો આદેશ આપ્યો. હનુમાન પવન સુત હતા. ખૂબ જ ઝડપે આકાશમાં ચાલ્યા. પરંતુ શિવલિંગની સ્થાપનાનો સમય નજીક આવી ગયો છે. જ્યારે સીતાજીએ જોયું કે હનુમાનને પાછા ફરવામાં મોડું થઈ રહ્યું છે, ત્યારે તેમણે સમુદ્ર કિનારાની રેતીને મુઠ્ઠીમાં બાંધીને શિવલિંગ બનાવ્યું. આ જોઈને રામ ખૂબ જ પ્રસન્ન થયા અને સમયસર આ શિવલિંગની સ્થાપના કરી. નાના કદના જમણા શિવલિંગને રામનાથ કહેવામાં આવે છે.

પાછળથી હનુમાનના આગમન પર, રામે પ્રથમ નાના પ્રતિકાત્મક નાના શિવલિંગની પાસે કાળા પથ્થરના તે મોટા શિવલિંગની સ્થાપના કરી. આ બંને શિવલિંગ આજે પણ આ મંદિરના મુખ્ય મંદિરમાં પૂજાય છે. આ મુખ્ય શિવલિંગ જ્યોતિર્લિંગ છે.

પુલનો પૌરાણિક સંદર્ભ

સેતુ બંધનનું વર્ણન દર વર્ષે દશેરાના દિવસે અને ભારત, દક્ષિણપૂર્વ એશિયા અને પૂર્વ એશિયાના ઘણા દેશોમાં રામના જીવન પર આધારિત તમામ પ્રકારના નૃત્ય-નાટકોમાં કરવામાં આવે છે. રામે બનાવેલા આ સેતુનું વર્ણન માત્ર રામાયણમાં જ નથી, મહાભારતમાં પણ શ્રી રામના પુલનો ઉલ્લેખ છે. કાલિદાસના રઘુવંશમાં સેતુનું વર્ણન છે. શ્રી રામ સેતુનું વર્ણન પણ અનેક પુરાણોમાં આવે છે.

એન્સાયક્લોપીડિયા બ્રિટાનિકામાં તેને એડમ્સ બ્રિજ સાથે રામ સેતુ કહેવામાં આવ્યું છે. નાસા અને ભારતીય ઉપગ્રહ દ્વારા લેવામાં આવેલી તસવીરોમાં ધનુષકોડીથી જાફના સુધીના ટાપુઓની પાતળી રેખા દેખાય છે, જે આજે રામ સેતુ તરીકે ઓળખાય છે.

4 જગન્નાથપુરી

જગન્નાથ મંદિર ઇતિહાસ
જગન્નાથ મંદિર


ઓરિસ્સા રાજ્યમાં પુરી ખાતે પૂર્વ દિશામાં.
વિષ્ણુની નીલમાધવની મૂર્તિ જેને જગન્નાથ કહેવામાં આવે છે. સુભદ્રા અને બલભદ્રની મૂર્તિઓ પણ છે.

આ મંદિરની ઉત્પત્તિ સાથે જોડાયેલી પરંપરાગત દંતકથા અનુસાર, ઇન્દ્રનીલ અથવા નીલમથી બનેલી ભગવાન જગન્નાથની મૂળ મૂર્તિ એક અગરુ વૃક્ષ નીચે મળી આવી હતી. તે એટલું ચમકદાર હતું કે ધર્મે તેને પૃથ્વીની નીચે છુપાવવાનો પ્રયત્ન કર્યો. માલવના રાજા ઇન્દ્રદ્યુમ્ને આ મૂર્તિ સ્વપ્નમાં જોઈ હતી. પછી તેણે કઠોર તપસ્યા કરી અને પછી ભગવાન વિષ્ણુએ તેને કહ્યું કે તે પુરીના દરિયા કિનારે જાઓ અને તેને દારુ (લાકડુ) મળશે. તેણે તે લાકડામાંથી મૂર્તિ બનાવવી જોઈએ.

રાજાએ પણ એવું જ કર્યું અને તેને લાકડાનુ થડ મળ્યુ. તે પછી વિષ્ણુ અને વિશ્વકર્મા સુથાર, કારીગર અને શિલ્પકારના રૂપમાં રાજાની સામે દેખાયા. પરંતુ તેણે શરત મૂકી કે તે એક મહિનામાં મૂર્તિ તૈયાર કરશે, પરંતુ ત્યાં સુધી તે એક રૂમમાં બંધ રહેશે અને રાજા કે કોઈ પણ વ્યક્તિ તે રૂમની અંદર નહીં આવે. મહિનાના છેલ્લા દિવસે જ્યારે ઘણા દિવસો સુધી કોઈ અવાજ ન આવ્યો, ત્યારે રાજાએ કુતૂહલવશ ઓરડામાં જોયું અને વૃદ્ધ કારીગર દરવાજો ખોલીને બહાર આવ્યો અને રાજાને કહ્યું કે મૂર્તિઓ હજુ અધૂરી છે, તેમના હાથ હજુ બનાવ્યા નથી. તેથી તે મૂર્તિ અધૂરી જ રહી.

રાજાના અફસોસ પર, શિલ્પકારે કહ્યું કે આ બધું દૈવી રીતે થયું છે અને આ મૂર્તિઓને આ રીતે સ્થાપિત કરવામાં આવશે અને પૂજા કરવામાં આવશે. પછી મંદિરમાં એ જ ત્રણ જગન્નાથ, બલભદ્ર અને સુભદ્રાની મૂર્તિઓ સ્થાપિત કરવામાં આવી.

જગન્નાથપુરી અને રથયાત્રાનો સંપુર્ણ ઇતિહાસ

1 thought on “चार धाम की रोचक जानकारी | 4 ધામ યાત્રા”

  1. Pingback: તુંગનાથ મહાદેવ : વિશ્વમા સૌથી વધુ ઊંચાઈએ આવેલું શિવ મંદિર - AMARKATHAO

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *