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ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे विस्तृत जानकारी
पुराणों के अनुसार, ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगा नहीं थी और इंसान पानी के लिए बूंद-बूंद तरसता था तब भगवान शिव ने स्वयं अपने अभिषेक के लिए त्रिशूल चलाकर जल निकाला। यही पर भगवान शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया। इसीलिए, इसका नाम ज्ञानवापी पड़ा और जहां से जल निकला उसे ज्ञानवापी कुंड कहा गया। ज्ञानवापी का उल्लेख हिंदू धर्म के पुराणों मे मिलता है तो फिर ये मस्जिद के साथ नाम कैसे जुड़ गया ?
ज्ञानवापी का अर्थ
ज्ञानवापी का सम्पूर्ण अर्थ है ज्ञान का तालाब। काशी की छः वापियों का उल्लेख पुराणों मे भी मिलता है।
पहली वापी: ज्येष्ठा वापी, जिसके बारे मे कहा जाता है की ये काशीपुरा मे थी, अब लुप्त हो गई है।
दूसरी वापी: ज्ञानवापी, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के उत्तर मे है।
तीसरी वापी: कर्कोटक वापी, जो नागकुंआ के नाम से प्रसिद्ध है।
चौथी वापी: भद्रवापी, जो भद्रकूप मोहल्ले मे है।
पांचवीं वापी: शंखचूड़ा वापी, लुप्त हो गई।
छठी वापी: सिद्ध वापी, जो बाबू बाज़ार मे है और अब लुप्त हो गई।
लिंग पुराण मे कहा गया है
“देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना।
तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते।”
इसका अर्थ है: प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है।
स्कंद पुराण मे कहा गया है: उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं |
क्षणेन तद्पाकृत्य ज्ञानवान जायते नरः |
अर्थात इसके जल से संध्यावंदन करने का भी बड़ा फल है, इससे भी ज्ञान उत्पन्न होता है, पाप से मुक्ति मिलती है।
स्कंद पुराण
योष्टमूर्तिर्महादेवः पुराणे परिपठ्यते ।।
तस्यैषांबुमयी मूर्तिर्ज्ञानदा ज्ञानवापिका।।
अर्थात ज्ञानवापी का जल भगवान
शिव का ही स्वरूप है।
पुराण जो ना जाने कितनी सदियों पहले लिखे गए, उसमें भी ज्ञानवापी को भगवान शिव का स्वरूप बताया गया है। सारे पुराण, कह रहे है की ज्ञानवापी हिंदुओं से जुड़ा हुआ है
लेकिन आज 2022 मे आप सुनते है की मस्जिद का नाम है ज्ञानवापी मस्जिद। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण से पहले काशी को अविमुक्त और भगवान शिव को अविमुक्तेश्वर कहा जाता था।
काशी मे अविमुक्तेश्वर के स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग की पूजा होती थी जिसे आदिलिंग कहा जाता था लेकिन मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमणो ने काशी के मंदिरों को कई बार नष्ट किया।मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को बनारस विजय के लिए भेजा। कुतुबुद्दीन ऐबक के हमले में बनारस के 1000 से भी अधिक मंदिर तोड़े गए और मंदिर की संपत्ति कहा जाता है 1400 ऊंटों पर लादकर मोहम्मद गोरी को भेज दी गई। बाद मे कुतुबुद्दीन को सुल्तान बनाकर, गोरी अपने देश वापिस लौट गया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनारस मे शासन के लिए 1197 मे एक अधिकारी नियुक्त किया था।बनारस मे ऐबक के शासन ने बड़ी कड़ाई के साथ मूर्तिपूजा हटाने की पूरी कोशिश की। इसका नतीजा ये हुआ की क्षतिग्रस्त मंदिर वर्षों तक ऐसी ही पड़े रहे क्योंकि इन्होंने ऐसा तोड़ा और ऐसा इनका राज चलता था की किसी की हिम्मत ही नहीं हुई की इन मंदिरों को फिर से बनाए। लेकिन 1296 आते -आते, बनारस के मंदिर फिर से बन गए और फिर से काशी की शोभा बढ़ाने लगे।
बाद मे अलाउद्दीन खिलजी के समय, बनारस के मंदिर फिर से तोड़े गए।फिर 14वी सदी मे तुगलक शासकों के दौर मे जौनपुर और बनारस मे कई मस्जिदो का निर्माण हुआ।कहा जाता है, ये सभी मस्जिदे, मंदिरो के अवशेषों पर बनाई गई थी। 14वी सदी मे जौनपुर मे शर्की सुल्तानो ने पहली बार, काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाया। 15वी सदी मे सिकंदर लोदी के समय भी बनारस के सभी मंदिरों को फिर से तोड़ा गया।वर्षों तक मंदिर खंडहर ही बने रहे।
16वीं सदी मे अकबर के शासन मे उनके वित्त मंत्री टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के आग्रह पर 1585 मे विश्वेश्वर का मंदिर बनवाया जिसके बारे मे कहा जाता है की यही काशी विश्वनाथ का मंदिर है। टोडरमल ने विधिपूर्वक ,विश्वनाथ मंदिर की स्थापना ज्ञानवापी क्षेत्र मे की। इसी ज़माने मे जयपुर के राजा मानसिंह ने बिंदुमाधव का मंदिर बनवाया लेकिन दोनों भव्य मंदिरों को औरंगजेब के शासनकाल मे फिर से तोड़ दिया गया।
1669 मे औरंगजेब ने बनारस के सभी मंदिरों को तोड़ने का फरमान दे दिया था जिसके बाद बनारस मे चार मस्जिदो का निर्माण हुआ जिसमें से तीन उस वक्त के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़कर बनी थी। इसमे विश्वेश्वर मंदिर की जगह जो मस्जिद बनी उसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है ये दावा है लोगों का। दूसरा दावा यह है की बिंदुमाधव मंदिर के स्थान पर धरहरा मस्जिद बनी। फिर है आलमगीर मस्जिद जो कृतिवासेशवर मंदिर की जगह बनाई गई।
2: काशी विश्वनाथ मंदिर का 16वी सदी का पुराना नक्शे मे कही भी मस्जिद का कोई भी ज़िक्र नहीं है।बीच मे आप जो हिस्सा देख रहे है वो ज्योतिर्लिंग दिख रहा है।नक्शे को 1820 -1830 के बीच ब्रिटिश अधिकारी James Princep ने तैयार किया था।इसमें कहीं भी मस्जिद का ज़िक्र नहीं है। हर जगह, मंदिर बताया गया है और इस नक्शे के मुताबिक मंदिर प्रांगण के चारों कोनो पर तारकेश्वर, मनकेश्वर, गणेश और भैरव मंदिर दिख रहे है। बीच का हिस्सा गृभगृह है जहां शिवलिंग स्थापित है और उसके दोनो तरफ शिव मंदिर भी दिखते है।
3+4: ये जो आप लाल border वाला हिस्सा देख रहे है, इसके बारे मे कहा जाता है की ये आज की मस्जिद की boundary है।पुराने नक्शे मे आपको शिवलिंग दिखाया जा रहा है। अब अगर आज की तारीख मे आप जाइएगा, तो शिवलिंग , मस्जिद परिसर के अंदर दिखता है। अब सवाल यह उठता है की नंदी जी मस्जिद की तरफ क्यों देख रहे है जबकि काशी विश्वनाथ मंदिर तो उनके पीछे स्थित है। नंदी जी तो सदैव शिवलिंग की तरफ ही देखते है।
दावा यह भी किया जाता है की जब औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के बाद वहीं पर मस्जिद बनाने का फरमान दिया था तब मंदिर के गृभगृह को ही मस्जिद का मुख्य कक्ष बनाने की योजना बनाई गई थी। इस योजना के अनुसार पश्चिम के दोनों छोटे मंदिर और श्रंगार मंडप तोड़ दिए गए और गृभगृह का मुख्य द्वार जो पश्चिम की तरफ था उसे चुन दिया गया। ऐश्वर्य मंडप और मुक्ति मंडप के मुख्य द्वार बंद कर दिए गये और मंदिर का यही भाग, मस्जिद की पश्चिमी दीवार बन गया।
5+6+7: मंदिर की पश्चिमी दीवार को ऐसे ही टूटी सिथति मे इसलिए रख दिया गया क्योंकि औरंगजेब चाहता था की हिन्दू समाज को नीचा महसूस हो। जब मंदिर तोड़ा गया उसके मलबे को भी वहीं पड़े रहने दिया गया। दीवारे ,आज भी वैसी ही है। ज्ञानवापी कुंड का जिक्र, पंचकोसी परिक्रमा मे भी है और मध्यकाल की पुरानी कलाकृतियों मे भी ज्ञानवापी कुंड को मंदिर का हिस्सा दिखाया गया है, जहां जाकर भक्त संकल्प लेते है और संकल्प पूरा होने के बाद फिर से ज्ञानवापी आते है।
ज्ञानवापी मे ,पंडितजी, भक्तों का संकल्प छुड़वाते हुए कहते है : हे, ज्ञानवापी के पीठाधीश्वर, मैं, पंचकौसी परिक्रमा का वाचिक, मानसिक रुप से समर्पित करते हुए, मेरे प्राण छूटे तो आपकी शरण प्राप्त हो।
सारे नक्शे, पंचकौसी परिक्रमा, ज्ञानवापी, सारा ज़िक्र, हिंदुओं के साथ मिलता है।काशी की पंचकौसी परिक्रमा का सनातन धर्म मे बड़ा महत्व है।मान्यता है की 25 कौस के इस क्षेत्र मे 33 कोटि देवताओं का वास है। औरंगजेब के मंदिर तुड़वाने के 125 साल बाद इसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था।
1777 मे महारानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी के बगल मे दोबारा विश्वानाथ मंदिर बनवाया।1828 के आसपास, नेपाल के राजा ने मंदिर परिसर मे नंदी की स्थापना करवाई। इसके बाद, महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था।ये सब अभी वाला जो आप काशीविश्वनाथ मंदिर देखते है, उसके बारे मे बताया जा रहा है।
8: एक इतिहास यह भी है की 18वी सदी के दौरान मराठा सरदार मलहार राव ने काफी कोशिश की थी की ज्ञानवापी मस्जिद की जगह मुस्लिम ,वाजिब मुआवजा लेकर, विश्वनाथ मंदिर फिर बनवा दे लेकिन अंग्रेज, मस्जिद तोड़कर मुस्लिम समाज को नाराज़ नहीं करना चाहते थे।
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1936 मे कोर्ट भी पहुंचा था। तब मुस्लिम पक्ष ने पूरे परिसर को मस्जिद करार करने की अपील भी की थी। 1937 मे वाराणसी ज़िला अदालत ने मुस्लिम पक्ष की अपील को खारिज करते हुए कहा था की ज्ञानकूप के उत्तर मे ही भगवान विश्वनाथ का मंदिर है क्योंकि कोई दूसरा ज्ञानवापी कूप बनारस मे नहीं है।जज ने ये भी लिखा की एक ही विश्वनाथ मंदिर है जो ज्ञानवापी परिसर के अंदर है।
इतिहासकार अनंत सदाशिव अलतेकर ने 1937 मे एक किताब प्रकाशित करते है ‘History Of Banaras’। इसमें भी कहा गया है की मस्जिद के चबूतरे पर स्थित खंबों और नक्काशी को देखने से प्रतीत होता है कि ये 14वी-15वी शताब्दी के है।प्राचीन विश्वनाथ मंदिर मे ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था।अरघा भी 100 फीट का बताया गया है। ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल, बराबर गिरता रहा है, जिसे पत्थर से ढक दिया गया।यहां, शृंगार-गौरी की पूजा-अर्चना होती है। तहखाना यथावत है, ये खुदाई से सपष्ट हो जाएगा।
विश्वनाथ मंदिर, बार-बार गिराए जाने का उल्लेख, विद्वान नारायण भट्ट ने अपनी किताब ‘त्रिस्थली सेतु’ मे भी किया है।ये किताब संस्कृत मे 1585 मे लिखी गई थी। नारायण भट्ट ने अपनी किताब मे लिखा है की अगर कोई मंदिर तोड़ दिया गया हो और वहां से शिवलिंग हटा दिया गया हो या नष्ट कर दिया गया हो, तब भी वो स्थान महात्म्य की दृष्टि से विशेष पूजनीय है।अगर मंदिर नष्ट कर दिया गया हो तो खाली जगह की भी पूजा की जा सकती है।
वहीं इतिहासकार डा. मोतीचंद ने अपनी किताब ‘काशी का इतिहास’ मे लिखा है की “विद्वान नारायण भट्ट का समय 1514 से 1595 तक था और ऐसा जान पड़ता है की उनके जीवन के बड़े काल मे काशी मे विश्वनाथ मंदिर नहीं था”। मतलब उस दौर मे मंदिर तोड़ा हुआ था, उसका पुनर्निर्माण नहीं हुआ था और ऐसा पता चलता है की औरंगजेब से पहले विश्वनाथ के 15वीं सदी के मंदिर के स्थान पर कोई मस्जिद नही बनी थी।ज्ञानवापी मस्जिद का 125×18 फुट नाप का पूरब की ओर का चबूतरा शायद 14वीं सदी के विश्वनाथ मंदिर का बचा हुआ भाग है।”
डा. मोतीचंद यह भी बताते है की मंदिर केवल गिराया ही नहीं गया उस पर ज्ञानवापी की मस्जिद भी उठा दी गई।मस्जिद बनाने वालों ने पुराने मंदिर की पश्चिमी दीवार गिरा दी और छोटे मंदिरों को जमीदोंज कर दिया।पश्चिमी उत्तरी और दक्षिणी द्वार भी बंद कर दिए गए।द्वारों पर उठे शिखरों को गिरा दिया गया और उनकी जगह पर गुंबद खड़े कर दिए गए। गर्भगृह मस्जिद के मुख्य दालान में परिणित हो गया। चारों अंतरगृह बचा लिए गए और उन्हें मंडपों से मिलाकर 24 फुट दालान निकाल दी गई।मंदिर का पूर्वी भाग तोड़कर एक बरामदे में बदल दिया गया।
इसमें अब भी पुराने खंभे लगे हैं। मंदिर का पूर्वी मंडप, जो 125×35 फुट का था, उसे एक लंबे चौक में बदल दिया गया।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास ( History of Kashi Vishwanath Temple )
1. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।
2. ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था।
3. इस मंदिर को बाद में 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था।
4. इस मंदिर को स्थानीय लोगों ने मिलकर फिर से बनया था परंतु सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया।
5. पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था।
6. इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
7. इसके बाद 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है।
8. औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।
9. सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए।
10. 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।
11. 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
12. सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है।
13. 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।
14. इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था।
लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही शिवलिंग है।
15. काशी में मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ धाम को 800 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से बनाया गया है। इसमें श्रद्धालुओं की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा गया है। प्राचीन मंदिर के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए 5 लाख 27 हजार वर्ग फीट से ज्यादा क्षेत्र को विकसित किया गया है।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्रफल पहले 3,000 वर्ग फीट था। लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से मंदिर के आसपास की 300 से ज्यादा बिल्डिंग को खरीदा गया। इसके बाद 5 लाख वर्ग फीट से ज्यादा जमीन में लगभग 400 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से निर्माण किया गया।
हालांकि निर्माण कार्य अभी जारी है। इसमें प्रमुख रूप से गंगा व्यू गैलरी, मणिकर्णिका, जलासेन और ललिता घाट से धाम आने के लिए प्रवेश द्वार और रास्ता बनाने का काम है। गौरतलब है कि धाम के लिए खरीदे गए भवनों को नष्ट करने के दौरान 40 से अधिक मंदिर मिले। उन्हें विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के तहत नए सिरे से संरक्षित किया गया है।
🚩ॐ जय श्री बाबा काशी विश्वनाथ की🙏
🚩जय हो नंदीश्वर महाराज की
हिरकणी – मां के ममता की सत्य घटना 👈